ग्रहशान्ति

ज्योतिष के नवग्रह नौ देव हैं जिन्हें जीवों के कर्मफल देने तथा ग्रहशान्ति (ग्रहों का पूजन) करने से अशुभ फलों में कमी करने की शक्ति है। ग्रहशान्ति का लाभ उन्हें अधिक मिलता है जो अपने वास्तविक जीवन में सनातन धर्म के नियमों (भोजन व व्यवहार आदि) का यथासम्भव कड़ाई से पालन करते हैं, मांस-मदिरा का सेवन करने वालों को ग्रहशान्ति से बहुत लाभ नहीं होता, हाँ सच्चे हृदय से प्रायश्चित करने व आगामी जीवन के लिए मांस-मदिरा का त्याग कर देने का संकल्प लेने के बाद ग्रहशान्ति करने से भी लाभ होता है।

महर्षि वेदव्यास जी कृत नवग्रह स्तोत्र में कुल १२ श्लोक हैं। रविवार - सोमवार के क्रम से पहला श्लोक सूर्यदेव का, दूसरा चन्द्रदेव का, तीसरा मंगलदेव का, चौथा बुधदेव, पाँचवाँ बृहस्पतिदेव का, छठा शुक्रदेव का, सातवाँ शनिदेव का, आठवाँ राहुदेव का और नवाँ केतुदेव का है, दसवें से बारहवें श्लोक तक स्तोत्र का माहात्म्य है। प्रतिदिन स्नान करने के बाद इस नवग्रह स्तोत्र का कम से कम ११ बार पाठ (शीघ्रलाभ की इच्छा अथवा अधिक आवश्यक हो तो संख्या बढ़ा सकते हैं, १०८ कर लें तो उत्तम) करना चाहिए। निर्धारित संख्या का पाठ करते समय अन्तिम पाठ के साथ दसवें से बारहवें श्लोक तक स्तोत्र का पाठ करें। उसके बाद यदि कुण्डली के अशुभ ग्रह के बारे में जानकारी हो तो उन ग्रहदेव के मन्त्र का न्यूनतम ३ माला (१०८ दाने की एक माला से) जप करना चाहिए।

यदि ग्रहशान्ति दूसरे के लिए की जा रही हो तो पूजन के पहले दाहिने हाथ में जल लेकर उस व्यक्ति के नाम/गोत्र का स्मरण करके उसकी ग्रहशान्ति का संकल्प लेना चाहिए। जिन्हें उच्चारण में असुविधा हो वह यूट्यूब पर उपलब्ध स्रोत से सही उच्चारण में सहायता प्राप्त कर सकते हैं, कण्ठस्थ हो जाने पर मन में इसकी पुनरावृत्ति करते रहें।

॥ नवग्रह स्तोत्रम् ॥

  
जपाकुसुमसंकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम्।
तमोरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मिदिवाकरम्॥१॥

दधिशङ्खतुषाराभं क्षीरोदार्णवसंभवम्।
नमामि शशिनं सोमं शम्भोर्मुकुटभूषणम्॥२॥

धरणीगर्भसंभूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभं।
कुमारं शक्तिहस्तं तं मङ्गलं प्रणमाम्यहम्॥३॥

प्रियङ्गुकलिकाश्यामं रूपेणाप्रतिमं बुधम्।
सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम्॥४॥

देवानां च ऋषीणां च गुरुं काञ्चनसन्निभं।
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम्॥५॥

हिमकुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम्।
सर्वशास्त्रप्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम्॥६॥

नीलाञ्जनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजं।
छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्॥७॥

अर्धकायं महावीर्यं चन्द्रादित्यविमर्दनम्।
सिंहिकागर्भसम्भूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम्॥८॥

पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रहमस्तकम्।
रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम्॥९॥

इति व्यासमुखोद्गीतं यः पठेत् सुसमाहितः।
दिवा वा यदि वा रात्रौ विघ्नशान्तिर्भविष्यति॥१०॥

नरनारीनृपाणां च भवेद्दुःस्वप्ननाशनम्।
ऐश्वर्यमतुलं तेषामारोग्यं पुष्टिवर्धनम्॥११॥

ग्रहनक्षत्रजाः पीडास्तरस्कराग्निसमुद्भवाः।
ता सर्वाः प्रशमं यान्ति व्यासो ब्रूते न संशयः॥१२॥
    

आपातकालीन स्थिति हेतु

आपातकाल (Emergency) की स्थिति में महामृत्युञ्जय मन्त्र के जप का प्रभाव सभी जानते हैं, परन्तु वैदिक मन्त्र के विधिपूर्वक प्रयोग से लाभ होता है, अतः किसी को भी हर समय उसका प्रयोग करने से बचना चाहिए। पौराणिक मृत्युञ्जयमन्त्र का मन में ही जप, कभी भी और किसी भी समय किया जा सकता है, यदि कोई होस्पिटल में है तो स्वयं अथवा किसी के लिए भी मन में इसका निरन्तर जप करने से रोग से छुटकारा पाने में सहायता मिलती है।

पौराणिक मृत्युञ्जय मन्त्र:

मृत्युञ्जयमहादेवं त्राहि मां शरणागतम्।
जन्ममृत्युजराव्याधिपीडितं कर्मबन्धनैः॥
    

बीजमन्त्र और तान्त्रिक मन्त्र Backfire करते/कर सकते हैं इसलिए मैं लोगों को इनका प्रयोग करने से बचने की सलाह देता हूँ, परन्तु ऊपर लिखे पौराणिक मन्त्र कोई भी कर सकता है। मृत्युञ्जय मन्त्र का भी जप मन में करना चाहिए, जोर से चिल्लाकर नहीं। मन में कभी भी और किसी भी स्थिति में इनका जप किया जा सकता है।

मेरी बातों से कोई भी सहमत/असहमत हो सकता हैं परन्तु मेरी जानकारी व अनुभव के आधार पर मैं इतना ही कह सकता हूँ कि श्रद्धा व विधिपूर्वक पौराणिक मन्त्रों का प्रयोग करने से लाभ मिलता है। यदि ग्रहशान्ति का कोई महत्व न हो तो ज्योतिष के अध्ययन का मानव जीवन में कोई उपयोग नहीं इसलिये यह निश्चित जानना चाहिये कि ग्रहशान्ति का लाभ होता है। उपरोक्त मन्त्रों का प्रयोग आत्महित व लोकहित में है। नित्य करते रहने से सभी ग्रहों की शान्ति होती है और जीवन के हर क्षेत्र में लाभ होता है।